MONTHLY BULLETIN OF CITY MONTESSORI SCHOOL, LUCKNOW, INDIA

Personality Development

CMS creates a better future for all children by maximising
their opportunities through quality education and initiatives for unity and development.

January 2020

अपने युग के अवतार की शिक्षाओं को ‘जानना’ ही प्रभु को जानना है’ तथा उन शिक्षाओं पर ‘चलना’ ही ‘प्रभु भक्ति’ है!

- डाॅ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

(1) यह शरीर और उसके सारे अंग हमें प्रभु का कार्य करने के लिए मिले हैं :-

संसार के प्रत्येक बालक को उसके माता-पिता तथा शिक्षकों द्वारा सबसे पहले यह बताया जाना चाहिए कि मैं कौन हूँ? मेरा शरीर मैं नही हूँ, शरीर मेरा मित्र है। यह शरीर और उसके सारे अंग हमें प्रभु का कार्य करने के लिए मिले हैं। मेरा मन मैं नहीं हूँ, मन मेरा औजार है। मनुष्य की असली पहचान यह है कि वह एक अजर, अमर और अविनाशी आत्मा है। मृत्यु शरीर की होती है, आत्मा अनन्त काल तक प्रभु मिलन के लिए दिव्य लोक में यात्रा करती है। इसलिए माता-पिता तथा शिक्षकों द्वारा अपने बालक को बार-बार यह बताना चाहिए कि मैं शरीर नहीं हँ, मैं आत्मा हूँ।

(2) हमारा असली घर यह संसार नहीं वरन् दिव्य लोक है:-

हमारा असली घर या वतन प्रभु का दिव्य लोक है। संसार के जीवन में हम जिस स्तर तक अपनी चेतना या आत्मा को विकसित कर लेते हैं उसी स्तर का स्थान हमें दिव्य लोक में मिलता है। मनुष्य का संसार का जीवन छोटा सा लगभग 100 वर्षों का होता है लेकिन देह के अन्त के बाद आत्मा का जीवन अनन्त काल का होता है। संसार के छोटे से जीवन को सांसारिक सुख-सुविधाओं तथा ऐशो-आराम से भरने की भौतिक इच्छा की पूर्ति के लिए अपनी आत्मा के अनन्त काल के जीवन को कभी भी दांव पर लगाने की भूल नहीं करनी चाहिए।

(3) संसार का जीवन देह के अन्त के बाद के जीवन की तैयारी के लिए मिला है:-

संसार के प्रत्येक मनुष्य के जीवन को दो भागों में बांटा जा सकता है - पहले भाग में संसार का जीवन तथा दूसरे भाग में देह के अन्त के पश्चात का अनन्त काल का आत्मा का जीवन आता है। वास्तविकता यह है कि अनेक लोगों को यह ही नहीं मालूम है कि उनके पहले भाग का जीवन दूसरे भाग की परिपूर्णता के लिए मिला है। अतः संसार में रहकर हमें मुख्य रूप से उन्हीं चीजों को अपने जीवन में विकसित करना चाहिए जिसकी हमें देह के अन्त के पश्चात आत्मा की अनन्त काल के जीवन यात्रा में आवश्यकता होगी।

(4) सभी अवतार परमात्मा के प्रतिनिधि होते हैं:-

परमपिता परमात्मा की ओर से धरती पर युग-युग में अवतरित हुए अवतार परमात्मा के प्रतिनिधि होते हैं। परमात्मा की दिव्य योजना के अन्तर्गत धरती पर व्यक्ति तथा सारे समाज का कल्याण करने के लिए अवतारों को परमात्मा भेजता है। ये अवतार युग-युग में ऐसे स्थान पर जन्म लेते है, जहां सबसे अधिक समस्या होती है। वे अपने-अपने युग की सबसे बड़ी समस्या का समाधान अपनी शिक्षाओं के माध्यम से व्यक्ति तथा मानव जाति को देते हैं। कालान्तर में उनकी शिक्षायें विभिन्न भाषाओं में अनुवादित होकर सारे संसार में प्रचारित हो जाती हैं।

(5) अपने युग के अवतार की शिक्षाओं को ‘जानना’ ही प्रभु को जानना है:-

प्रभु ने हमें केवल दो कार्यों (पहला) परमात्मा को जानने और (दूसरा) उसकी पूजा करने के लिए ही इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में उत्पन्न किया है। पहला परमात्मा को जानने का मतलब है परमात्मा द्वारा युग-युग में पवित्र धर्म ग्रंथों - गीता की न्याय, त्रिपटक की समता, बाईबिल की करूणा, कुरान की भाईचारा, गुरू ग्रन्थ साहेब की त्याग व इस युग के अवतार बहाउल्लाह के माध्यम से आई किताबे अकदस की हृदय की एकता आदि की मूल शिक्षाओं को जानना है।

(6) युग अवतार की शिक्षाओं पर ‘चलना’ ही ‘प्रभु भक्ति’ है:-

दूसरा परमात्मा की पूजा करने का मतलब है कि परमात्मा की युग-युग में जो शिक्षायें अवतारों के माध्यम से धरती पर प्रकटित हुई हैं, उन पर जीवन-पर्यन्त दृढ़तापूर्वक चलते हुए अपनी नौकरी या व्यवसाय करके अपनी आत्मा का सर्वोत्तम विकास करना है। इसलिए हमें संसार के प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से ही मर्यादा, न्याय, समता, करूणा, भाईचारा, त्याग, हृदय की एकता की मूल शिक्षाओं को आत्मसात कराना चाहिए।

(7) मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने हंसते-हंसते अपने सारे सुख त्याग दिये:-

मानव सभ्यता के ज्ञात इतिहास के अनुसार आज से 7500 वर्ष पूर्व के युगावतार राम का जन्म अयोध्या में हुआ। राम ने बचपन में ही प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया। राम ने शरीर के पिता राजा दशरथ के वचन को निभाने के लिए हँसते हुए राज्याभिषेक के ठीक पूर्व पिता दशरथ के वचन को निभाने के लिए 14 वर्षों के लिए वन जाने का निर्णय सहर्ष स्वीकार किया। राम अपनी पत्नी सीता तथा भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षो तक वनवास के कठोर कष्टों को हंसते हुए सहन करते हुए रावण को मारकर धरती पर मर्यादा की स्थापना करके मर्यादा मर्यादापुरूषोत्त श्रीराम बन गये।

(8) योगेश्वर कृष्ण ने सीख दी कि न्यायार्थ अपने प्रिय बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है:-

5000 वर्ष पूर्व के युगावतार कृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में हुआ। कृष्ण ने बचपन में ही ईश्वर की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और उनमें अपार ईश्वरीय ज्ञान व ईश्वरीय शक्ति आ गई और उन्होंने बाल्यावस्था में ही कंस का अंत किया। इसके साथ ही उन्होंने कौरवों के अन्याय को खत्म करके धरती पर न्याय की स्थापना के लिए महाभारत के युद्ध की रचना की।

(9) भगवान बु( ने कहा कि जाति प्रथा मानव निर्मित है यह ईश्वरीय आज्ञा नहीं है:-

2500 वर्ष पूर्व के युगावतार बुद्ध ने मानव जाति को सामाजिक कुरीतियों-अन्याय से मुक्ति दिलाने तथा ईश्वरीय प्रकाश का मार्ग ढूंढ़ने के लिए राजसी भोगविलास त्याग दिया और अनेक प्रकार के शारीरिक कष्ट झेले। बचपन में ही उन्होंने राज दरबार में इस बात को साबित किया कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। बुद्ध ने बताया कि जाति प्रथा मानव निर्मित है यह ईश्वरीय आज्ञा नहीं है। समता ईश्वरीय आज्ञा है।

(10) प्रभु ईशु को कांटों का ताज पहनाकर तथा बड़ी-बड़ी कीलें ठोककर सूली पर टांग दिया गया :-

लगभग 2000 वर्ष पूर्व के युगावतार ईशु मानव जाति को प्रेम तथा करूणा की सीख देने के लिए धरती पर आये। ईशु सबको प्रेम की सीख जा-जाकर देते थे। ईशु को जब सूली दी जा रही थी, तब वे परमपिता परमात्मा से प्रार्थना कर रहे थे - हे परमात्मा! इन्हें माफ कर दो जो मुझे सूली दे रहे हैं। प्रभु की ओर से आवाज आयी ईशु तू इनके लिए प्रार्थना कर रहा है जो तुझे सूली दे रहे हैं। ईशु ने कहा कि प्रभु आपकी ही सीख है कि ऐसे लोग अबोध एवं अज्ञानी हैं, अपराधी नहीं जिनके माता-पिता तथा शिक्षकों ने उन्हें बचपन से ही परमात्मा तथा आत्मा का बोध नहीं कराया है। परमात्मा ने कहा कि ईशु तू ठीक कहता है। दयालु परमात्मा ने सभी अज्ञानियों को माफ कर दिया। जिन लोगों ने ईशु को सूली पर चढ़ाया देखते ही देखते उनके कठोर हृदय पिघल गये। इस तरह ईशु ने धरती पर करूणा का सागर बहा दिया।

(11) मोहम्मद साहब ने मानव जाति को भाईचारे की सीख दी :-

1400 वर्ष पूर्व के युगावतार मोहम्मद साहब का अवतरण ऐसे समय हुआ, जब भाई-भाई के खून का प्यासा हो गया था। बड़े कबीलें के लोग छोटे कबीलें की बहिन-बेटियों तथा उनके जानवरों को उठाकर ले जाते थे। वे अनेक प्रकार से उन्हें सताते थे। मोहम्मद साहब ने इस अन्याय का खुलकर विरोध किया। मोहम्मद साहब को दुष्टों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा और वे 13 वर्षों तक मक्का में मौत के साये में जिऐ। जब वे 13 वर्ष के बाद एक दिन रात के अन्धेरे में छिपकर मदीने चले गये तब भी उन्हें मारने के लिए कातिलों ने मदीने तक उनका पीछा किया। पवित्र कुरान की पहली सीख है कि खुदा रब्बुल आलमीन है अर्थात इस सारे संसार के सभी इंसान एक खुदा के बंदे हैं। धरती के किसी भी इंसान से नफरत करना, किसी का दिल दुखाना तथा सताना अल्ला की शिक्षाओं के खिलाफ है।

(12) नानक ने मानव जाति को सेवा और त्याग की सीख दी :-

500 वर्ष पूर्व के युगावतार नानक को ईश्वर एक है तथा ईश्वर की दृष्टि में सारे मनुष्य एक समान हैं, के दिव्य प्रेम से ओतप्रोत सन्देश देने के कारण उन्हें रूढ़िवादिता से ग्रस्त कई बादशाहों, पण्डितों और मुल्लाओं का कड़ा विरोध सहना पड़ा। नानक ने प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लिया था उन्होंने जगह-जगह घूमकर तत्कालीन अंधविश्वासों, पाखण्डों आदि का जमकर विरोध किया। नानक की शिक्षायें सेवा तथा त्याग पर आधारित हैं। उन्होंने मानव जाति को सेवा तथा त्याग की सीख दी। नानक ने कहा कि जब तेरे हृृदय में सभी की भलाई का विचार होगा तब वह तेरे चिन्तन को परमात्मा की ओर ले जायेगा।

(13) बहाउल्लाह ने मानव जाति को हृदयों की एकता की सीख दी है:-

200 वर्ष पूर्व आज के युगावतार बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह को प्रभु का कार्य करने के कारण 40 वर्षों तक जेल में असहनीय कष्ट सहने पड़े। जेल में ही बहाउल्लाह की आत्मा में प्रभु का प्रकाश आया। बहाउल्लाह की सीख है कि परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहिन सभी परिवारजनों के हृदय मिलकर एक हो जाये तो परिवार में स्वर्ग उतर आयेगा। इसी प्रकार सारे संसार में सभी के हृदय एक हो जायें तो सारा संसार स्वर्ग समान बन जायेगा।

(14) जब सभी अवतारों का परमात्मा एक है तो हमारे अनेक कैसे हो सकते हैं? :-

हमें संसार के प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से यह बताया जाना चाहिए कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। इसके लिए हमें प्रत्येक बालक को बचपन से ही एक ही परमात्मा की ओर से युग अवतारों के माध्यम से दी गईं सभी शिक्षाओं का ज्ञान देने के साथ ही उन्हें इन शिक्षाओं पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। हमें उन्हें बचपन से ही यह सीख देनी चाहिए कि अपने युग के अवतार की शिक्षाओं को ‘जानना’ ही प्रभु को जानना है’ तथा उन शिक्षाओं पर ‘चलना’ ही ‘प्रभु भक्ति’ है।

-जय जगत -

Message from the Director of Strategy

Roshan Gandhi Forouhi
Director of Strategy, CMS

Message from
Mr Roshan Gandhi Director of Strategy, CMS

Entering a new year is an exciting time, particularly on the rare occasion of entering a new decade. A recognisable milestone and opportunity for reflection on the years gone by and planning for the years ahead, the start of 2020 is a suitable time for a school community to think deeply about the progress that must be achieved in the next decade both for the education sector as a whole and for our institution specifically.

One area of necessary development will be the use of data and technology in education, in line with trends across all industrial sectors. Technology will never replace the essential role of a teacher and students rarely demonstrate improvement without human intervention - but technology can nevertheless assist teachers to improve students’ learning. The most obvious existing manifestations of effective educational technology are in quality tools and content that enhance lessons, software that reduces teachers’ administrative burden and creates more time for professional development, and media through which new pedagogical practices such as flipped learning can be experimented with. Going forward, however, it is technology’s ability to generate data that will be most powerful - whether it be used to pinpoint differentiated learning levels topic-wise within a class, to track teacher effectiveness against sophisticated metrics, to develop minutely personalised learning plans for individual students, or in a myriad other possible ways. With successful pilots ongoing across CMS in automated copy-correction through handwriting recognition, personalised adaptive learning, virtual reality teaching, flipped learning, and more, a strong start has been made - but much more is to be achieved in the use of appropriate and varied education technologies to harness the power of data for the benefit of students’ learning.

A second major priority area to consider will be the preparation of children for a job market that will be constantly and rapidly evolving. Children will need to master soft skills, become expert users of technology, develop creative minds, and grow in the quality of adaptability in order to thrive or even survive in a world where computers will be far superior to ourselves in knowledge and data processing. No longer will it be good enough to narrowly chase traditional careers, and a parental mindset shift will be an unavoidable necessity. With the introduction of state-of-the-art career counselling and a range of extra-curricular activities on offer, CMS has been taking major strides in this direction - but more must be done both here and across the education sector to prepare students for an unpredictable future. The need for this kind of skill development to be accompanied by meaningful character education and wellbeing support cannot be ignored, and hence initiatives like the JYEP, the Virtues Project, and psychological counselling must continue to grow as priority areas.

These are but two examples, but so much more will also be possible and required. Blessed with an incredibly strong and innovative team of teachers, school leaders, and administrators, CMS is well-equipped to tackle the challenges of the new decade head-on and remain a world-class trendsetting institution in the 2020s and beyond!

बापू की 150वीं वर्षगाँठ पर गणतंत्र दिवस परेड के अवसर पर इस वर्ष 26 जनवरी, 2020 को सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ द्वारा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ विषय पर निकाली जाने वाली झाँकी का आलेख

सिटी मोन्टेसरी स्कूल द्वारा बापू की 150वीं वर्षगाँठ पर गणतन्त्र दिवस की परेड में प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी 26 जनवरी, 2020 को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ यानि सारा विश्व हमारा परिवार है का संदेश देती हुई झाँकी निकाली जा रही है। इस झाँकी के माध्यम से सी.एम.एस. के बच्चे सारे विश्व के लगभग 7 अरब पचास करोड़ लोगों से वसुधा को अपने परिवार का सदस्य मानते हुए सारी मानव जाति प्रेम तथा सेवा करने की प्रेरणा देंगे।

इस झाँकी के प्रथम भाग में एक बच्चा ग्लोब उठाये हुए सारे विश्व को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की शिक्षा दे रहा है। इसके साथ ही ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सन्मति दे भगवान!! का संदेश देते हुए एक ही परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में भेजे गये अवतारों राम, श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध, ईसा मसीह, मोहम्मद साहब, गुरू नानक देव तथा बहाउल्लाह को उस युग की आवश्यकता के अनुरूप दी गई मर्यादा, न्याय, सम्यक ज्ञान, करूणा, भाईचारा, त्याग और हृदय की एकता का संदेश देते हुए दिखाया गया है।

इस झाँकी के द्वितीय भाग में अनेकता में एकता प्रदर्शित करते हुए एक ही छत के नीचे मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा, बौद्ध विहार, बहाई मंदिर आदि विभिन्न पूजा स्थल दिखाये गये हैं, जो यह संदेश दे रहा है कि सभी धर्मों का स्रोत एक ही परमपिता परमात्मा है। इसी छत के नीचे सी.एम.एस. के बच्चे ‘‘जय जगत... जय जगत... जय जगत पुकार रे जा, दूसरे के सुख के वास्ते अपना सुख विसारे जा......’’ गाने पर नृत्य प्रस्तुत कर रहें है।

झाँकी के तृतीय भाग में एक बच्चे को महात्मा गाँधी के रूप में दिखाया गया है जो कि एकता का प्रतीक है। इस भाग में बैठे हुए अन्य बच्चे महात्मा गाँधी के ‘वसुधैव कुटुम्बकम् तथा ‘जय जगत्’ का यह संदेश जन समुदाय में पहुंचा रहे हैं। महात्मा गाँधी ने कहा था कि ‘‘यदि हम विश्व में शांति चाहते हैं और संसार से युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें उसकी शुरूआत बच्चों से करनी होगी।’’

झाँकी के चैथे भाग में एक बार पुनः महात्मा गाँधी की भव्य आदमकद प्रतिमा को दिखाया गया है, जो कि यह संदेश दे रही है कि संसार में शांति, सुरक्षा, व्यवस्था और विकास के लिए वल्र्ड फेडरेशन आॅफ फ्री नेशन्स ‘विश्व संसद’ बनाना आवश्यक है। इसके अलावा आधुनिक विश्व की अन्तराष्ट्रीय समस्याओं का अन्य कोई समाधान नहीं है।

यहाँ उल्लेखनीय है कि अहिंसा की नीति के जरिये विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के महात्मा गांधी के महत्वपूर्ण योगदान को वैश्विक स्तर पर स्वीकारने के लिए ही विश्व की शान्ति की सबसे बड़ी सस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने 2007 में महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विश्व के 193 देशों में प्रतिवर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।

इस प्रकार महात्मा गाँधी के 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर पर सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ द्वारा आगामी गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी, 2020 को निकाली जाने वाली यह झाँकी भारत के साथ ही विश्व के लगभग दो अरब पचास करोड़ बच्चों को बचपन से ही सारे विश्व को अपना परिवार मानते हुए सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना के लिए कार्य करने हेतु प्रेरित करेंगी।